सोच रहा चुप बैठा धुनिया
भीड़-भाड़ वह चहल पहल वह बंद द्वार का एक महल वह
ढोल मढ़ी-सी लगती दुनिया
मेहनत के मुँह बँध मुसीका घुटता जाता गला खुशी का
ताड़ रहा है सब कुछ गुनिया
फैला भीतर तक सन्नाटा अंधियारों ने सब कुछ पाटा
कहाँ-कहाँ से टूटी पुनिया
हिंदी समय में अवनीश सिंह चौहान की रचनाएँ