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कविता

चुप बैठा धुनिया

अवनीश सिंह चौहान


सोच रहा
चुप बैठा धुनिया

भीड़-भाड़ वह
चहल पहल वह
बंद द्वार का
एक महल वह

ढोल मढ़ी-सी
लगती दुनिया

मेहनत के मुँह
बँध मुसीका
घुटता जाता
गला खुशी का

ताड़ रहा है
सब कुछ गुनिया

फैला भीतर
तक सन्नाटा
अंधियारों ने
सब कुछ पाटा

कहाँ-कहाँ से
टूटी पुनिया


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